स्वप्न मेरे: रौशनी का लाल गोला खो गया है सहर से

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

रौशनी का लाल गोला खो गया है सहर से

बच गए थे चंद लम्हे ज़िंदग़ी के कहर से
साँस अब लेने लगे हैं वो तुम्हारे हुनर से

लोग कहते हैं तुम्हारी बात से झड़ते हैं फूल
रीता हुआ आँगन हूँ मैं गुज़रो कभी तो इधर से

बारिशों का कारवाँ रुकता नही है आँख से
दर्द का बादल कोई गुज़रा है मेरे शहर से

समय की पगडंडियों मैं स्वप्न बिखरे हैं मेरे
पाँव में कंकड़ चुभेंगे तुम चलोगे जिधर से

तमाम उम्र तुम महसूस करोगे मेरे अहसास को
तुम तो बस इक बीज हो मेरे उगाये शजर से

इक जमाना हो गया दीपक जलाये बैठा हूँ
कभी तो गुज़रोगे तुम मेरी राहे गुज़र से

तमाम उम्र तेरी आँख में बैठा रहूँगा
ख़्वाब देखोगे तुम सिर्फ़ मेरी नज़र से

जुगनुओं की मांग सारे शहर से है आ रही
क्या रौशनी का लाल गोला खो गया है सहर से?

11 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कोशिश है बात कहने की। लिखते रहें। मेरी शुभकामना। किसी शायर की पंक्तियाँ भेजना चाहता हूँ-

    यह और बात है कि आँधी हमारे बस में नहीं।
    मगर चराग जलाना तो अख्तियार में है।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.

    मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.

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  3. शानदार। ब्‍लागजगत में आपका स्‍वागत है।

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  4. इक जमाना हो गया दीपक जलाये बैठा हूँ
    कभी तो गुज़रोगे तुम मेरी राहे गुज़र से
    श्री दिगंबर जी आपकी सुंदर रचना पढी मज़ा आ गया
    बधाई स्वीकारें /समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

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  5. इक जमाना हो गया दीपक जलाये बैठा हूँ
    कभी तो गुज़रोगे तुम मेरी राहे गुज़र से
    Swapnon ko mukta kar hum tak pahuchane ka shukriya. Blog parivar aur mere blog par swagat.

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  6. लोग कहते हैं तुम्हारी बात से झड़ते हैं फूल
    रीता हुआ आँगन हूँ मैं गुज़रो कभी तो इधर से

    बारिशों का कारवाँ रुकता नही है आँख से
    दर्द का बादल कोई गुज़रा है मेरे शहर से

    baise to sari rachana hi sundar hai parantu ye lines kuch jyada hi khoobsoorat hai.

    vishal

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  7. आपके रचनात्मक ऊर्जा के हम क़ायल हुए.
    समाज और देश के नव-निर्माण में हम सब का एकाधंश भी शामिल हो जाए.
    यही कामना है.
    कभी फुर्सत मिले तो मेरे भी दिन-रात देख लें.

    http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/

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  8. हमेशा की तरह शानदार गज़ल दिल को छू गयी।

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  9. वाह ...पुराणी रचना पढकर भी आनंद आया.

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  10. तमाम उम्र तुम महसूस करोगे मेरे अहसास को
    तुम तो बस इक बीज हो मेरे उगाये शजर से

    बहुत खूब ...सुन्दर गज़ल

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है