स्वप्न मेरे: व्यथा

शनिवार, 13 दिसंबर 2008

व्यथा

मेरे घर के सामने से, तुम जो गुज़रो मुसाफिर,
ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में....

हो भला सूखे हुवे पत्तों की आवाज़ें वहाँ,
टकटकी बांधे हुवे बूढा खड़ा होगा जहाँ,
रात में घर लौट कर पंछी न कोई आएगा,
सुबह से ही गीत कोई विरह के फ़िर गायेगा,

कुछ उदास चूड़ियाँ खनकेंगी तुम को देख कर,
खिड़कियों से झांकती आँखें मिलेंगी गाँव में,
ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में....

लौट कर आती हुई लहरों से तुम फ़िर पूछना,
साहिलों की रेत में उनका निशां तुम ढूंढ़ना,
पूछना उस हवा से आयी है जो छु कर उन्हे,
क्या कभी भी याद आता है पुराना घर उन्हे,

तोड़ न देना वो दिल, पूछे जो तुमसे चीख कर,
कहाँ हैं वो मुसाफिर बैठे थे कल जो नाव में,
ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में....

14 टिप्‍पणियां:

  1. एक अच्छी रचना के लिए आभार
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  2. सुन्दर ! बहुत अच्छी लगी आपकी कविता !
    घुघूती बासूती

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  3. ek acchi rachna jo khub saari bahvnaaye samaete hui hai.....
    dil ko chuti hai.....

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  4. "पूछना उस हवा से आयी है जो छु कर उन्हे,
    क्या कभी भी याद आता है पुराना घर उन्हे,"
    Bahut acha ban pada hai

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  5. कुछ उदास चूड़ियाँ खनकेंगी तुम को देख कर,
    खिड़कियों से झांकती आँखें मिलेंगी गाँव में,
    ठहर जाना पल दो पल पीपल की ठंडी छाँव में
    भाई क्या कहूँ...??? लाजवाब रचना...वाह वा...
    नीरज

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  6. जीवन की िविवध िस्थितयों को सुंदरता से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । भाव और िवचारों का अच्छा समन्वय है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  7. आपकी यह रचना मुझे व्यक्तिगत रूप से काफी पसंद आई..!!! औरों से भी ज्यादा..!!!

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  8. शनिवार १७-९-११ को आपकी पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया पधार कर अपने सुविचार ज़रूर दें ...!!आभार.

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  9. बहुत भावपूर्ण उत्तम रचना |मन को छू गयी |
    बहुत अच्छी लगी |
    आशा

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  10. पूछना उस हवा से आयी है जो छु कर उन्हे,
    क्या कभी भी याद आता है पुराना घर उन्हे,

    बहुत बढ़िया सर!

    सादर

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  11. कुछ ..ठहर सा गया . पल दो पल के लिए नहीं...

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  12. छना उस हवा से आयी है जो छु कर उन्हे,
    क्या कभी भी याद आता है पुराना घर उन्हे,
    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  13. कितना सुन्दर, सरस प्रवाही गीत...
    सादर बधाई...

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