स्वप्न मेरे: एहसास

शनिवार, 20 दिसंबर 2008

एहसास

अक्सर ऐसा हुवा है
बहूत कोशिशों के बाद
जब उसे मैं छू न सका
सो गया मूँद कर आँखें अपनी
बहुत देर तक फ़िर सोया रहा
महसूस करता रहा उसके हाथ की नरमी
छू लिया हल्हे से उसके रुखसार को
उड़ता रहा खुले आसमान में
थामे रहा उसका हाथ
चुपके से सहलाता रहा उसके बाल
पर हर बार
जब भी मेरी आँख खुली
अचानक सब कुछ दूर
बहुत दूर हो गया
क्या वो सिर्फ़ इक एहसास था...................
एहसाह जिसे महसूस तो किया जा सकता है
पर जागती आखों से छुआ नही जा सकता
जागती आंखों से छुआ नही जाता

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब, गहरी मनोभावना!

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  2. मन में आए भाव को हूबहू अभिव्यक्त करने का अच्छा प्रयास। अच्छी लगी आपकी कविता। ..बधाई

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  3. बेहद सुंदर रचना अपने मन में आए भावों को सजीव चित्रण देने का खूब ज्ञान है आपको

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  4. मन के भावों को बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है आपने.

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  5. dua karte hain ki aapka ahesash haqiqat mein tabdil ho
    aapak sacha pyar aapke karib ho
    aise hi man ke bhavo ko shabd dijiyen
    taki hum sabko itni khoobsurat rachnayein naseeb ho

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