स्वप्न मेरे: अप्रैल 2009

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

हकीकत

मुरझाये
जीर्ण शीर्ण विकृत
सहमे से चेहरे....
कुछ खोजती हुयी
बीमार पीली पीली आँखे.....
न जाने कब लड़खडा कर
"साईंलेंसर" लगे
गिर जाने वाले कदम........
अँधेरी संकरी गलियों में
छीना झपटी करते हाथ.......
सदियों से लावारिस फुटपाथ पर
धकेल दिए जाते हैं

जिस तरह..........

जन्य शाखाओं से अनभिग्य
सूखे जर्जर पत्ते
सारे शहर से सिमेट कर
अँधेरे घटाटोप कूंवे में
बेतरतीब फैंक दिए जाते हैं
उन्हें कोई गुलदान में
नहीं सजाता
"वनस्पति शास्त्र" की कोपी में
नहीं लगाता
वह केवल जलने की लिए होते हैं.......
मात्र जलने के लिए .......

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

मन में एक अंश भी बजरंग नही

आप नही जिंदगी में रंग नही,
रस नही, खुशी नही, उमंग नही,

आज हैं रूठे तो कल साथ होंगे,
दोस्ती की बात है कोई जंग नही,

प्यार के धागों से बँधा है बंधन,
कट गयी जो डोर तो पतंग नही,

खून के धब्बे हैं वो इंसानियत के,
फर्श पर बिखरा था लाल रंग नही,

इस शहर के रास्ते चौड़े हैं बहुत,
गाँव की पगडंडियाँ भी तंग नही,

राम के आदर्श तो बस नाम के,
मन में एक अंश भी बजरंग नही,

मौत से आगे का सफ़र है यारो,
तन्हा चलो कोई किसी के संग नही,

बुधवार, 8 अप्रैल 2009

छोड़ जाते छाप

पोंछ दो आंसू किसी के है जो पश्चाताप,
व्यर्थ ही गंगाजली से धो रहे हो पाप,

सामना कैसे करूँगा सोच कर जाता नहीं,
माँ मेरी रोती बहुत है थक चुका है बाप,

यहाँ की हर चीज़ में मीठी सी यादें है बसी,
वो भी माँ का ट्रंक है जो बेच रहे आप,

चाँद की तो दूरियों को नापना आसान है,
बात है दिल की अगर गहराइयों को नाप,

लोग जो निर्माण करते हैं पसीने से डगर,
वक़्त की बंज़र ज़मीं पर छोड़ जाते छाप,

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

क्‍यों नहीं

गुरु देव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से तैयार ग़ज़ल......प्रस्तुत है आप सब के सामने

ठंडक का चांदनी में है एहसास क्‍यों नहीं,
सूरज में भी तपिश का है आभास क्‍यों नहीं,

गूंगे हैं शब्‍द, मौन है छन्‍दों की रागिनी,
हैं गीत भी मगर कोइ विन्‍यास क्‍यों नहीं,

जब साथ में जीवन सखी भी तेरे है वो फिर,
चहूं ओर महकता हुआ मधुमास क्‍यों नहीं,

अगनित यहां वो अग्नि परीक्षाएं दे चुकी,
सीता का खत्‍म हो रहा वनवास क्‍यों नहीं,

बचपन को गिरवी रख के समय की दुकान पर,
तुम पूछते हो शहर में उल्‍लास क्‍यों नहीं,

पशु पक्षी, पेड़ पौधे सभी पूछते हैं ये,
इस आदमी की बुझ रही है प्‍यास क्‍यों नहीं,

पत्‍थर के देवता ने कहा आदमी से ये,
तुझको है धर्म पे भला विश्‍वास क्‍यों नहीं,