स्वप्न मेरे: मिलते रहे तो प्यार भी हो जाएगा कभी ...

बुधवार, 26 अगस्त 2015

मिलते रहे तो प्यार भी हो जाएगा कभी ...

कहती है मोम यूँ ही पिघलना फ़िज़ूल है
महलों में इस चिराग का जलना फ़िज़ूल है

खुशबू नहीं तो रंग अदाएं ही ख़ास हों
कुछ भी नहीं तो फूल का खिलना फ़िज़ूल है

सूरज ढले निकलना जो जलती मशाल हो
जो रात ढल गयी तो निकलना फ़िज़ूल है

बदलेंगे हम नहीं ये कहा उनके कान में
हमको हैं बोलते न बदलना फ़िज़ूल है

छींटे जो चार मार दिए बैठ जाओगे
पीतल के बरतनों में उबलना फ़िज़ूल है

मिलते रहे तो प्यार भी हो जाएगा कभी
यूँ मत कहो की आप से मिलना फ़िज़ूल है

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